आवारगी
बचपन बीता ,
अब कहीं छूट गयी वो वो स्कूल घंटी ,
कहीं खो गए वो किताबों से भरे बस्ते ,
कहाँ गयी जालिम मास्टर की वो छड़ी ,
बड़े होकर तोड़ने पर दावे लगे थे जिस पर ,
ढूंढें नहीं मिलता वो पल ,
छोटी छोटी बातों पर मूह फुला लेने का
कहाँ गयी वो मैडम ,
कहाँ है वो प्रिन्सिपल,
बुलाओ उसे , बताओ उसे
अब मुर्गे नहीं है हम ,
सब छूट गया ,
चोरी हो गया वो पल ,
पल वो साथ नहीं अब मेरे
बस साथ है तो बस ,
वही "आवारगी" ।
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