बड़ी हवेली


 आज  दौलपुर के जमींदार बलवंत सिंह के पांचो   बेटों की शादी एक साथ संपन्न हुई। पैसों का अपार  भंडार होने के कारण ठाकुर साहब  में दहेज लेने का कोई लालच नहीं  था , इसी कारण उन्होंने सबसे सुन्दर लड़कियों का चुनाव किया जो उन्हें किसी अमीर घर में नहीं बल्कि दो अलग -अलग राजपूत परिवार में मिली जिनमे से चार  बहने  जो उनके छोटे बेटों को ब्याही गयीं थी एक ही परिवार की थी और जो बड़े बेटे  बलदेव को ब्याही थी वो अपने माँ बाप की इकलोती लड़की थी , जो थोड़ी बहुत पढ़ी लिखी एवं सभी बहुओं में सबसे सुंदर भी थी ।
ठाकुर साहब ने दोनों खानदानो के आगे पहले ही शर्त रख दी थी की बहुएं  शादी करके हवेली आएंगी और मरने के बाद ही हवेली से बहार जाएंगी , हमारे घर की बहु होने के बाद उन्हें केवल अपने पतियों से ही मिलने की इजाजत होगी और किसी से नहीं
ठाकुर साहब  द्वारा दहेज़ न लेने के कारण दोनों परिवारों ने शर्त भी मान ली और   बेटियों  की विदा  भी करा दी ।
        पाँचों बहुओं का हवेली में पहली बार  प्रवेश हुआ  । हवेली में घुसते से ही दरवाजों को बंद कर दिया गया ,
सभी बहुएं  हवेली को देखकर अति उत्साहित हुईं उन्होंने इतना बड़ा घर कभी भी नहीं देखा था , प्रतेक बहु का कमरा उनके घर से भी बड़ा था लेकिन सब खाली खाली सा पड़ा था । सभी बहुओं को उनके पतिदेव अपने अपने -2 कमरे में ले जा चुके थे । सभी के कमरे नीचे बने हुए थे लेकिन बड़ी बहु का कमरा ऊपर था सबसे अलग क्योंकि बलदेव को बचपन से ही अलग रहने  का शौक था ।
हवेली में बहुओं का पहला दिन :- (ठाकुरों में  किसी  की बहुओं के नाम नहीं लिए जाते इसलिए मेने भी नहीं लिखे )
वैसे तो  हवेली में हर काम के लिए नौकर  थे ,   किन्तु  आज से सारे नौकरों को निकाल  दिया गया था सिर्फ आज ही के दिन बहुओं को उनका काम समझाने के लिए एक नौकरानी को  रखा गया था और समझाने के बाद उसे  बहार का रास्ता दिखा दिया गया । उसी से सभी  बहुओं  को पता चला की इस घर में उन पाँचों के अलावा और कोई महिला नहीं है उनकी सास तो कई साल पहले मर चुकी थी ।
इस बात की बड़ी बहु को अलावा  सभी को ख़ुशी हुई और सब हंसने भी लगीं  ।
 दिन के समय सभी मर्द घर से बाहर  चले गए । इसी बीच चारों बहनों ने बड़ी बहु से मित्रता  करी  और अपने अपने काम भी बाँट लिए ।
शाम होते ही सभी मर्दों की हवेली में वापसी हुई  । मर्दों की यही दिनचर्या  थी। बहुओं को  काम करने के अलावा  अपने पति का ही इंतज़ार करने का अधिकार था और कुछ नहीं, जिसका प्रशिक्षण  उन्हें मायके से ही मिला  था ।
             देखते ही देखते एक साल  भी  बीत गया ।
आज बलदेव सिंह के छोटे भाई रणजीत सिंह की बहु बच्चे को जन्म देने वाली है। रणजीत कमरे के बहार खुश  बैठा है। उसे पूरी उम्मीद है उसकी बहु को लड़का ही होगा । दाई बहार निकली और सहम कर बोली लड़की हुई है । रणजीत के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी दाई के जाते ही तेष में आगया और कमरे में घुसकर बहु पर लात घूंसों से वार चालू कर दिया और बच्ची  को उठाकर दिवाल
से दे मारा मौके पर ही दोनों की मौत हो गयी कोई कुछ नहीं बोला बाकी की चरों बहुएं  भी गर्ववती थी सदमे में और कुछ डर  से बेहोश हो गयीं , तुरंत  उन्हें  उनके कमरों में पहुंचा दिया गया । "घर में कई साल बाद किसी की मौत हुई थी, मौत नहीं बल्कि  हत्या हुई थी लेकिन हत्या वही होती है जो दूसरे की या दुसरे के द्वारा   की जाती है"
ये तो अपने ही परिवार का हिस्सा थी इसलिए ये तो मौत है ।
खैर  होनी  को कौन टाल  सकता है।
जो होना था सो हो गया। दाई को वापिस बुलाया गया डरा धमकाकर इस हत्या को प्रसव के दोरान हुई मौत कबूल करवाया गया और पूरे गाँव में बात फैलवा दी गयी । दुसरे दिन अंतिम संस्कार भी करवा दिया गया । पुलिस , बिजली , डाकघर जैसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी लेकिन बहुत दिनों बाद बहु के मायके में खबर पहुँच गयी किन्तु  सबने बात को सच मान लिया और अपनी मक्कारी का घूँट पी  कर फिर दैनिक क्रिया में जुट गए  ।
अभी तक सब अच्छा ही चल रहा था लेकिन अब बहुओं की आपस में बातें कम ही होने लगी और बड़ी बहु अकेली पड़ गयी  ।
धीरे -धीरे सबसे छोटी बहु की पीड़ा बढ़ी और उसने भी एक बेटी को जन्म दिया रणजीत की तरह विक्रम को भी असीम गुस्सा आया लेकिन इस बार बलदेव ने उसे रोक दिया । लेकिन ठाकुरों का घर था और घर में बेटी होना कैसे बर्दास्त कर सकते हैं  दाई को उस बच्ची  को मारने को बोला गया लेकिन दाई ठाकुर नहीं थी उसने इंकार कर दिया , पिता बलवंत ने विक्रम को बुरी तरह पीता  और कहा " अपना काम खुद नहीं कर सकता जा तम्बाखू दाल दे उसके मूह में " ताजुरवा सब बोलता है उनके इस अंदाज से बलदेव  को एहसास हो गया था की हो -न -हो पिताजी ने भी अपनी बेटी को इसी तरह मारा है।
बच्ची  को मार कर दफना दिया गया । विक्रम की बहु न निगलने और ना ही उगलने की स्थिति में  थी मरने के डर से अपनी  बेचारगी स्वीकार की , अगले पांच दिनों में बाकी दोनों छोटी बहुओं ने भी बेटियों को जन्म दिया और दोनों बेटियों को भी मार दिया गया ।
  अब बड़ी बहु का बच्चा जनने  का दिन आ ही गया था । बड़ी बहु के चेहरे पर डर और बलदेव के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़  उभर रहीं थी । पिता बलवंत सिंह को उम्मीद थी की बड़ी बहु को लड़का ही होगा लेकिन शायद किस्मत को ये मंजूर नहीं था बड़ी बहु ने भी लड़की को जन्म दिया ।
सब अपने अपने कमरे में चले गए बाकी की बहुओं में कहीं न कहीं ख़ुशी नाच रही थी वो बड़ी बहु को भी अपने दर्द का एहसास करना चाहती थी।
बलदेव आगे का काम जानता था लेकिन ना जाने क्यों उसकी हिम्मत नहीं हुई । कुछ देर बाद हिम्मत करके उसने लड़की को उठाया और हवेली से बहार ले गया , उस वक़्त बलवंत ने उसे देखलिया  और समझ गए की वो उसे कहीं फेंकने जा रहा है ,उस बच्ची  के चेहरे पर चादर जैसी सिलवटें  पड़ी हुई थी और वो एक दम लाल राखी थी उसे -देखते देखते  बस यहीं उससे गलती हो गयी उसने उसका मुस्कुराता चेहरा देख लिया  बच्ची ने बलवंत की छाती पर लात मारी जिसका हल्का सा लेकिन खुशनुमा एहसास उसे हुआ , न जाने कैसे कुछ देर पहले हुई बच्ची  इस तरह खिलखिला कर मुस्कुरा गयी बलवंत की आँखे फिर उससे न हटी उसे लेकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया
और काफी देर तक उसे देखता रहा उस बच्ची ने इस विशाल शारीर से आंसू निकलवा ही  दिए , बलवंत के एक आंसू की बूँद उस बच्ची के चेहरे पर पड़ी और वो खुसी हंस पड़ी और दोनों हाँथ और पैरों को आपस में जोड़ने लगी ऐसा लग रहा था जैसे ताली बजा रही हो
बलवंत के ह्रदय का पत्थर पिघल चूका था और वो उसके साथ खेलने लगा । अँधेरा छाने लगा और उसके साथ नई नयी समस्या भी छाने लगी की अब क्या ?
कोई हल न मिलने पर वो दाई के घर गया और उसे लालच देकर बच्ची  को पालने को कहा लेकिन बड़े ठाकुर के डर  से वो नहीं मानी।
 आधी रात को बलदेव बच्ची को लेकर घर पहुंचा , ये पता नहीं किस्मत उसकी  थी या उस बच्ची की सब सो चुके थे । लेकिन बड़ी बहु जागी हुई थी । जब इन्सान   पर परिस्तिथियों का घातक  प्रहार हो तो इन्सान की बुद्धि शुन्य की ओर चली  है जब उसने बलदेव को अन्दर आते हुए देखा तो करुण नैनों से देखकर बोली कहाँ फेंक दिया उसे ,उसे अभी भी उम्मीद थी की वो जिंदा होगी और रात को चुपके से हवेली से भागकर उसे उठा लाएगी । बलदेव उसका सवाल सुनकर हैरान था क्योंकि बच्ची उसके हाँथ में सुरक्षित थी फिर भी उसे दिखाई क्यों नहीं दी ।
क्योंकि उसने उसके जिंदा होने की कल्पना ही नहीं करी थी उसके मन में तो बस यही ख्याल था की वो जगह का पता लगा कर उसे वहां से उठा लाएगी और वो बस वह कल्पनाओं में खो गयी ।
बलदेव ने उसके हांथों में बच्ची  को दिया लेकिन फिर उसने वही प्रश्न किया , लेकिन वो जवाब क्या दे जवाब तो प्रश्न का होता है किसी ग़लतफहमी का नहीं वो निरुत्तर वहीँ जमीन पर सो गया ।
हवेली में बच्ची का पहला दिन :-
ये हवेली की नयी सुबह थी बलदेव के लिए एक कठिन परीक्षा का दिन  । सुबह -सुबह सभी मर्द हलके होने के लिए खेतों में पहुँच चुके थे । सिवाए बलदेव के वो अभी भी सो रहा था किसी ने उसे जगाने की हिम्मत भी नहीं की  , बच्ची के रोने से दोनों पति पत्नी की नींद खुली चूंकि उनका कमरा ऊपर था एवं उसका भी दरवाजा लगा हुआ था जिसके कारण उसकी आवाज़ नीचे बहुओं को सुनाई नहीं दी।
बहु कुछ समझ ही नहीं पायी और उसे गले लगाकर रोने लगी अब मुसीबत बलदेव के लिए शुरू हो गयी थी , थोड़ी देर बाद बलदेव हवेली से बाहर  निकला उसे निकलता देख बहुएं  बड़ी बहु से हमदर्दी बांटने उसके  कमरे में पहुंची ।
                    दरवाजा खोलते ही सभी की आँखे फट गयीं बड़ी बहु बच्ची  को दूध पिला रही थी जितना वो तीनो अपने दुःख से दुखी नहीं थी अब उसके सुख से दुखी हो गयीं ।
गंवार थी लेकिन थी तो लड़कियां  ही जानती थी की पतियों को बताने का अंजाम क्या होगा , तीनो बहनों ने आपस में बातचीत करके निर्णय लिया की किसी को नहीं बताएंगी । "गंवार थी लेकिन थी तो लड़कियां ही पचा नहीं पायी तीनो बात को अपने अपने पतियों से बोल दिया लेकिन गंवार थी लेकिन थी तो लड़कियां ही ये भी बोल दिया आप कुछ मत करना नहीं तो" .......(शारीरिक सुख से बंचित रह जाओगे ) , और बात भी उन तीनो ने उसी दौरान कही थी जिस कारण उनके पति ध्यान नहीं दे पाए सुबह सारी  स्तिथि का तीनों ने पता लगाया
और घर से बहार निकलकर बलदेव से छोटे किन्तु तीनो से बड़े भाई जो की विधुर है  को बताई । बलदेव से कोई कुछ नहीं बोला चारों ने तरकीब जमी  कि  दोपहर में जाकर बच्ची को मार देंगे । उधर तीनो बहनों को अपनी गलती का एहसास हो चूका  था और फिर उन्होंने सारी  बात बड़ी बहु को बताई  उससे वो घबरा गयी फिर चारों ने बैठकर तरकीब लगायी।
     चारो भाई दरवाजे पर आ गए थे और जल्दी से बड़ी बहु के कमरे में पहुंचे बहु वहां नहीं थी , चरों एक साथ चिल्लाये भाभी चुपचाप बच्ची को हमारे हवाले कर दो नहीं तो बहुर बुरा हो जाएगा । भाभी ने भी हिम्मत दिखाकर बच्ची को  उनके आगे रख दी तीनो  बहुओं ने अपने अपने पति के पैर पकड़ लिये
लेकिन ताक़त के आगे दुःख टिक नही सका  पतियों ने तीनों को अपने अपने कमरे में बंद कर दिया
वापस  आकर देखा बच्ची  गायब  और बड़ा भाई रणजीत सिंह भी बस वहां भाभी बैठ कर रो रही थी ।
    आज बलदेव का मन किसी काम में नहीं लग रहा था इसलिए वो भी जल्दी  आ गया  हवेली में पहली बार इतनी जोर से रोने की आवाज़ आ रही थी चरों बहुएं रो रही थी और उसकी बीबी को समझा रही थी लेकिन
उसकी बीबी शांत बैठी थी जितने आंसू थे सब ख़त्म  हो गए थे ।तीनो बहुएं बारी-बारी से अपने ऊपर दोष मढ़  रहीं थी  । बलदेव सिंह सब जान चूका था जल्दी से हवेली से बहार निकला तीनो भाई मिलगये   लेकिन रणजीत सिंह का कोई पता नहीं था।
शाम को पिताजी को भी सब पता लग चूका था । अपने बड़े बेटे के इस व्यव्हार से दुखी हुए और उसे उसकी बहु के साथ घर से  निकाल  दिया । दो महीने तक बलवंत हवेली के चक्कर काटता रहा लेकिन रणजीत  और  बच्ची का कोई पता नही चला ।






 

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